पलायन कर ना सकूँगा मैं
Sunday, 07 October 2018 07:28:18
Manju Thapa
पलायन कर ना सकूँगा मैं।।
शून्य क्षितिज़ के आँगन से।
नीलाभ रजत के प्रांगण से।
श्याम मेघ की सौदामिनी से।
वर्षा की मृदु कामिनी से।
पलायन कर ना सकूँगा मैं।।
जीवन के हर उत्सव से।
बसंत के खिले पल्लव नव से।
लहरों के उठ गि
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कपट
Sunday, 07 October 2018 07:23:14
Manju Thapa
समझ सकता है वो कैसे ,
जो कठोर हृदय को जीता है।।
गरल पात्र को सामने रखकर,
स्वयं अमृत को पीता है।।
द्वेष विद्वेष की बातें कहकर,
मन में विष भर चल देता।
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समय
Sunday, 07 October 2018 07:19:56
Manju Thapa
कुछ बात भूल जाता है समय।
कुछ पल याद करता है समय।
कुछ प्रसन्न मन जीता है समय।
कुछ दुःख में डूब जाता समय।
कुछ निराशा में घुलता समय।
कुछ आशा में जीता समय।
कुछ राग गुनगुनाता है समय।
कुछ ऋतुओं को संवारता समय।
कुछ नटखट
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अभिलाषाएं
Sunday, 07 October 2018 07:15:41
Manju Thapa
अभिलाषाएं कितनी शेष हैं।
व्यथित मन की
कोई पुकारता कहता है
चले दूर है
अनंत
उत्तर सिंधु में डूब हुआ है
नहीं जानता है
प्रश्न पुराना
श्रेष्ठ
आओ थोड़ा खोज ले
रूककर दिशाओं में
मिले समाधान
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कही नहीं जाती हर बात।।
Tuesday, 02 October 2018 20:53:19
Manju Thapa
कही नहीं जाती हर बात।।
चाँदनी कहती नहीं कि देख लो मेरी रोशनी।।
सरगम कहती नहीं गुनगुनाओ मेरी रागिनी।।।
शब्द जो बंधते हमेशा नए रूप रंग में, वो कभी कहते नहीं कि ढूंढ लो हर वर्तनी।।
आग में वो ताप है कि जला से सम्पूर्ण जहाँ, तब भी कहता कहाँ की मुझसा
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