उम्मीद
कल खुशियाँ बिखरेंगी,इसी उम्मीद पर टिकी है नज़र।
देखती हूँ एकटक घड़ी की सुई को घूमती इधर उधर।।
चलना छोड़ दिया, राह भी अपनी और मंज़िल का पता है,
जब मेहनत की है तो मिलेगा फल, भाग्य का कैसा डर।।
मैं नहीं समझती कि लोग हमेशा सहारा देते रहेंगे, अपनाएंगे मुझे,
ऐसा होता तो सपने सजते ही नहीं और आँखों से छिन जाता प्रहर।
कुछ उलझने और विचार बेबस करते,रोकते मुझे आकर सामने,
धुँधला लगता क्षण भर को सब फिर सामने दिख जाती अपनी डगर।
मुस्काकर कहती सुबह-शाम तू रहना सदा हर हाल में एक सी,
हामी भर देती हूँ मैं आगे बढ़ने के उल्लास में भरकर।