फिर एक बार.....
फिर एक बार मैं ढूँढ रहा हूँ अपनी पराजय।।
विश्वास था ख़ुद पर कर लूँगा सामना
आते जाते हर एक वार का।
अहम् के आगे झुकना नहीं था,
अचूक था लक्ष्य मेरे हथियार का।
चला गया हूँ निश्चिन्त बनकर अभय।
फिर एक बार मैं ढूँढ रहा हूँ अपनी पराजय।।
बेला बीत गयी दिन की अब ,
निशा झिलमिलाती नहीं आएगी ।
जितना सोचूं उतना भार ये,
स्पंदित गति नहीं सह पायेगी ।
अपने को पाने को करना होगा उपाय।
फिर एक बार मैं ढूँढ रहा हूँ अपनी पराजय।।
समझ नहीं पाता हूँ कहाँ हुई भूल,
जो चलता गया बिन सोचे समझे।
आए कई मंथन राह रोकने पर,
बढ़ता गया अनदेखा कर बिन बूझे।
कैसे इस मुश्किल पल में मिलेगी जय।
फिर एक बार मैं ढूँढ रहा हूँ अपनी पराजय।।